फ्रंटियर्स इन साइकियाट्री जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के मुख्य लेखक और नॉर्वेजियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ के गुन्नहिल्ड जॉनसन हेटलैंड ने कहा, चाहे आप सोशल मीडिया पर समय बिताएं या फिर रील्स या ओटीटी प्लेटफॉर्म पर, उससे फर्क नहीं पड़ता। फर्क सोते समय स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी में रहने वाली कुल अवधि यानी स्क्रीन टाइम से पड़ता है।
हेटलैंड ने कहा, यूं तो छात्रों में नींद की समस्याएं बहुत आम हैं, लेकिन आंकड़े बताते हैं बिस्तर पर जाने के बाद एक घंटे तक स्क्रीन में बिताने से अनिद्रा के लक्षणों की 59 फीसदी अधिक संभावना है और नींद की अवधि भी 24 मिनट कम हो सकती है।
स्क्रीन टाइम का असर
स्क्रीन टाइम का मतलब है कि आप स्मार्टफोन, कंप्यूटर, टीवी, या टैबलेट जैसे स्क्रीन वाले डिवाइस का उपयोग करने में कितना समय बिताते हैं। अध्ययन के मुताबिक, स्क्रीन टाइम जितना अधिक होता है, नींद उतनी अधिक प्रभावित होती है।
अध्ययनकर्ताओं ने सोने से कम से कम एक घंटे पहले मोबाइल या अन्य किसी उपकरण का इस्तेमाल न करने की सलाह दी है।
बिस्तर पर मोबाइल चलाने के दुष्प्रभाव
नींद में खलल पड़ता है
नींद का पैटर्न बिगड़ जाता है
नीद की गुणवत्ता खराब हो जाती है
शरीर की आंतरिक घड़ी यानी सर्कैडियन रिदम प्रभावित भी होती है। यह घड़ी निर्धारित करती है कि आप कब सबसे अधिक सतर्क रहते हैं और कब सोने के लिए तैयार होते हैं।
सलाह
किताब पढ़ें…सोने से एक घंटे पहले मोबाइल को खुद से दूर रखें।
ब्लूलाइट फिल्टर ऑन करें।
रात को किताब पढ़ें या ध्यान करें।